करम ना लेख भरवा पडेंगा, जिन्दगी ने मंय,

कर्यू तारु देखाई र्‌यू है, तो केने जाईने क‌अें।

बचपन हेत्तु निकरी-निकरीने, अणहमझ मंय जातु र्‌यू,

अेकाबीजा ने देखा-देखी, केम नुं जे वेंजातु र्‌यू।

अक्कल दाढ़ें आवी पड़े तो, तारे चावीने ख‌अें,

करम ना लेख भरवा पडेंगा, जिन्दगी ने मंय।

पाप-पुण्ण तो पेले घर मंय, बाकी सब है बाद,

आणे घेरे साण्णी पेले घेरे वाण्णी, अेम तो है मां-बाप

आपड़ी ओलादे दीखी गई, इज्जत वगर नो थयं।

करम ना लेख भरवा पडेंगा, जिन्दगी ने मंय।

हाचा-झूठी नी परख करी ले, कुंण तने हमझाड़े,

मूंछ आवी है तो बाप नूं जूडू, तारे पोग में आवे।

खादे-पीदे खाली पड़े तो, डूंगरा खूटता जअें।

करम ना लेख भरवा पड़ेंगा, जिन्दगी ने मंय।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (मई 2023) ,
  • सिरजक : महेश देव भट्ट ,
  • संपादक : मीनाक्षी बोराणा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर