कांकरा गळ्यां गळ्यां में है।

बिना तोल रा, बिना मोल रा, अंत अळ्यां में है।

कांकरा गळयां गळयां में है।

हीरो खानां में खोज्यां भी मुसकान स्यूं पावै।

पण अै बाळन-जोगा सगलै सहज्यां मिल ज्यावै।

हाण हटक कीं नहीं, फायदो दूर टळ्यां में है।

कांकरा गळ्यां गळ्यां में है।

मौकै-बेमौकै एड़ी नै अै घायल कर दै।

जाड़ां बिच में आय पिसै जद पीड़ घणी भर दै।

लागी फेटः फेर लाभ के- हाथ मळ्यां में है

फांकरा गळ्यां गळ्यां में है।

पग-पग री ठोकर खांता रै, सुधरै की कोनी

बेहद बिगड़ चुक्या, आं रो अब बिगड़ै कीं कोनी।

जमग्या सड़कां में बै ही बस- बण्या सळ्यां में है।

कांकरा गळ्यां गळ्यां में है।

स्रोत
  • पोथी : उजाळो थपक्यां दे रह्यो ,
  • सिरजक : मुनि बुद्धमल्ल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास