म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में

जोश जवानी दो दिन ढळजा डूंगर को सो पाणी

गौणो कर गणगौर पूजी कांई मन में ठाणी

लाखीणी जिन्दगाणी रै

खोवै मत देस निकाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

ठाडो घाल्यो डील बापकै दो-दो झोटी चूंखी

आज देख रण्डवा का घर पर तोर्यूं की ज्यूं सूखी

मैं कोनै धन की भूकी रै

पाल्यूंली दुख दिवाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

स्याळै सीळी बाजै जाडो जोरां घूमर घालै

बैरण बणजा रात गात में बाण बिरह को सालै

नहीं रगत रगां में हालै रै

जम जाय पौस का पाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

सांझ पड्यां सिलगाऊं सिगड़ी रात्यूं डील तपाऊं

दो-दो ओढ़ रजाई ऊपर नीचै सोड़ बिछाऊं

पण वा गरमी कद पाऊं रै

ज्यो नणदोई का साळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

हुयो परायो पौस गई कुढतां-कुढतां काती

हर हफ्तै घरकां कै छानै लिख-लिख भेजूं पाती

थारो नाम रटूं दिन राती रै

मणियां कम पड़गा माळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

काळी रातां मीठी बातां आवै याद उदासी

सारा वादा गया भाड़ में लागी देर जरासी

मनैं मकड़ी की ज्यूं फांसी रै

मोहबत का झूंठा जाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

जोबन फूल गुलाब खिल्यां मण्डरावै भौंरा बौरी

काची कूंपळ आम फळ्यो फळ तोड़ लगा मत देरी

कतरै लो सूवटो कैरी रै

काढ़ैलो दोस रूखाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

सासू-सुसरो जेठ-जिठाणी नणदल लाड लडावै

पण छैल भंवर चितचोर बिना सूं हियो हिलोळा खावै

चाहे दुनियां आग बगावै रै

कद लागी लाय हिमाळा में

म्हारो जीव घणौ दुख पावै रै

बिछड़ै मत बालम स्याळा में॥

स्रोत
  • पोथी : भंवर-पुराण 'बिरहण' ,
  • सिरजक : भंवर जी 'भंवर' ,
  • प्रकाशक : भजनां री बेल करसां रो झूंपो, धिन धरती राजस्थानी
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