इतियास पुरुस इण महाराणा री याद घणैरी आवै है।

उण पूत सपूतां मायड़ रा नै मुरधर भौम बुलावै है।।

जिण बगत देस में मुगलां रै आतंक रा रोळा चालै हा,

हुकुम बिना तुरकां रै जद पत्ता तक कोनी हालै हा।

मरजादा रो मान मरण में कसर रत्तिभर कोनी ही,

सगळा राजन री रसनावां जद अकबर आगै मोनी ही।

उण बगत सूरमो अेक अटल आजादी रा गुण गावै है।

उण पूत सपूतां मायड़ रा नै मुरधर भौम बुलावै है।।

आजादी री साख बचावण सूर सदा ही आगै हो,

डूबतड़ै सूरज में बो परभात किरण सी लागै हो।

मेवाड़ धरा रो मान राण नित रो ही ऊंच रखायो हो,

अेकलिंग रो मुकुट मनोहर निज तेजस सूं चमकायो हो।

राजमहल रमणै री बैळ्यां तरवारां सूं खैलै हो,

बचपण सूं कीको वीर रैयो साथ्यां में सबसूं पैलै हो।

याद करां उणनै जद छाती चौड़ी व्है ज्यावै है।

उण पूत सपूतां मायड़ रां नैं मुरधर भौम बुलावै है।।

अकबरियै हर बार झुकावण दूत घणैरा भेज्या हा,

महाराणा हर बार उणानै बात सांचली कैग्या हा।

जद तक रजपूती खून रगां आफत सूं कदैई रुकूं नहीं,

सिर कटज्याणो मंगळ है पण थारै किणरै झुकूं नहीं।

जै झुकूं जरा सो मैं सुणल्यो बा अेकलिंग री चोखट है,

सौगन उणारी खाय कहूं म्हांनै राखणी रजपत है।

इसड़ी बातां नै सुण-सुण नै हिवड़ो म्हारो हरसावै है।

उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।

स्सै रजवाड़ा झुक ग्या हा पण महाराणा अडिग कहाया,

दुसम्यां रै खेमे उणी बगत दहसत रा बादळ मंडराया।

मूंछ पाग री साख भरणियो महाराणा उण दिन अेकल हो,

पण उज्जळ सूरज हिंदवाणी भूल्यो नीं माटी इक पल हो।

भीलां अर लोहागरियां नै बो सदा आपरा जाण रख्या,

दोन्यूं कोमां रा सूरवीर हर बगत राण रै साथ डट्या।

ऊंच-नीच अर जात-पांत रा भेद जिको मिटवावै है।

उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।

सुख-दुख रो संगी चेटकड़ो सांसां-सांसां में साथै हो,

राणा रै पथ रो अनुगामी सुपणो राणा रो माथै हो।

स्वामीभगती री कई मिसालां उणरै आगै फीकी ही,

रणखेत लड़ंता सूरां में चेटक री फुरती दीखी ही।

टापां चेतक री -टप-टप हळदीघाटी में बाजै ही,

दुसम्यां सूं लोहो लेवण नै हाकळ राणा री गाजै ही।

हळदीघाटी रो कण-कण ओज्यूं जिणरी जसगाथा गावै है।

उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।

पण आज अकब्बर म्हांन सुणां जद छाती धप-धप धुक ज्यावै,

खून रगां में उबळै है अर सीस सरम सूं झुक ज्यावै।

नोरोजा लेवणिया जद आज किताबां बिड़दीजै है,

नैणा रतगोळा रगत तणा लोहो लेवण नै छीजै है।

हूं आज कहूं हूं आजादी रो सुपणो राणा ही बीज्यो हो,

उण बगत एकलो हिंदवाणी भाला तलवारां रीझ्यो हो।

जिणरै कारण ही आज धरा जै-जै रजथान कहावै है।

उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : छैलू चारण ''छैल''
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