बै गर म्हारो मोभी छीन लै

कै पूजा घर उजाड़ दै

म्हारै पडौसी रौ

चाहै कित्ती कूख उजाड दै

चाहै कित्ता सिंदूर लूट लै,

पण नीं लूट सकैला

जीवण री ललक आदमी री

समै रौ मल्लम

आदमी-आदमी नै फेरूं जोड़ देवैला

घाव भरैला

जीवण री ललक

मन्सूबा माथै फैरेला

पांणी

आदमी-आदमी

फैरूं मिलैला

गळबइयां घाल मिलैला

नूंई घास ऊगैला।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : भंवर भादानी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति)
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