हरि, जेम हलाड़ौ तिम हालीजै,

कांइ धणियां सूं जोर किपाल।

मउळी दिवौ, दिवौ छत्र माथै,

देवौ सो लेऊं दयाल॥1॥

रीस करौ भांवै रळियावत,

गज भांवै खर चाढ गुलाम।

माहरै सदा ताहरी माहव,

रजा-सजा सिर ऊपरि राम॥2॥

मूझ उमेद बडी महमहण,

सिंधुर पाखै केम सरै।

चीतारौ खर-सीस चित्र दै,

किसूं पुतळियां पांण करै॥3॥

तूं स्वामी प्रिथिराज ताहरौ,

बळि बीजा को करै विलाग।

रूड़ौ जिकौ प्रताप रावळौ,

भूंडौ जिकौ अम्हीणौ भाग॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण