ऊधो को लैणौ, माधो को देणौ

म्हैं तो गोविंद, सू प्रीत लगाई जी

जग सारौ झूठौ, खेल भी झूठौ

गोविंद नैं साचौ पाई जी

कोई सूं लैणौ, कोई नैं देणौ

कोई सूं सिकायत पाई जी

गोविंद सुणै म्हारी, बी नै म्हैं सुणाऊं

होवै छै रोज लड़ाई जी

कोई सूं छानै, कोई सूं ओलै

कोई की बात बणाई जी

ओला-झाना करूं म्हारै गोविंद सूं

बी सूं नैण लड़ाई जी

रंग-रंगी म्हैं तो गोविंद का रंग में

बी की निजरां पाई जी

रोम-रोम में प्रीत गोविंद की

जग सूं होगी पराई जी

स्रोत
  • पोथी : सरद पुन्यूं को चांद ,
  • सिरजक : अभिलाषा पारीक ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन ,
  • संस्करण : Prtham