गौरी ऊभी पणघट माळै

चळवां-चळवां नीर उछाळै

गजबण तिरछी निजरा न्हाळै

पळ में दिल को चोरै चैन

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैँण॥

केहरि की सी पतळी कमर्यां लचकै जिंया कमाण

छायो जबरो जोस तातै दूध उफाण

जोबन गदरायो नखराळो

मीठा मेवा को सो ड़ाळो

बहता डूंगर को सो बाह्ळो

मारै तेज उछाळो सैण

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैंण॥

तीखी-तीखी घणी नुकीली चूंच सुआ सी नाक

हथणी की जूं चलै घूमती हिरणी की सी आंख

कामण करदे जादू काळो

आशिक खावै तेज तिंवाळो

घूमै घायल ज्यूं मतवाळो

लागै चन्दरमा कै घैण

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैंण॥

चोटी में चमकीली आंटी फूंदा खेलै फाग

लाम्बा काळा केश पीठ पर खाय पळेटा नाग

नाकां नथली कानां बाळी

कोयां काजळ रेख निराली

झीणा घूंघट में मतवाळी

मुळकै ज्यूं पूनम की रैण

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैंण॥

अंग घड्यो ठाली बेमाता रति राखी चूक

सुन्दर मुखडो खिल्यो कमल ज्यूं महकै चन्दन रूंख

कोरा कंचन की सी थाळी

सावन भादू की हरियाळी

कूकै बागां कोयल काळी

मीठा मिसरी बरगा बैण

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैंण॥

गाल गुलाबी होठ अंगूरी गळ मोत्यां की माळ

दमकै उजळा दांत हँस ज्यूं बैठ्या सरवर पाळ

जाणै परियां की शहजादी

देख्यां डिगजा सन्त समाधी

आशिक हिवड़ै आग लगादी

पळ में होग्यो लंका दहण

घालै गहरो घाव काळजै

गरक गुलाबी नैंण॥

स्रोत
  • पोथी : भंवर-पुराण 'बिरहण' ,
  • सिरजक : भंवर जी भंवर ,
  • प्रकाशक : भजनां री बेल करसां रो झूंपो, धिन धरती राजस्थानी