जियां बाळू सरकै मुट्ठी सूं, बियां’ई जिनगाणी!

दादो बोल्या- उम्र गई रै, करतां पाणी! पाणी!

माखी दांईं फस्या–गिरस्ती,

मकड़ी हाळो जाळ।

टूम-ठीकरी बेची सगळी,

तोड़्यो कियां’ई काळ।

भाईचारो रैयो सदां ई, जीव-जन्त चायै मरग्या,

बो डाकीड़ो छपनो खाग्यो गाँव खेत अर ढाणी।

छोड्या कोनी भुरट,मोथिया,

खेजड़ली रा खोखा।

इण ओदर री आग मांय नै,

बळग्या चोखा-चोखा।

घास-फूस री कांई पूछो भुळस,गया सपनां भी,

इण धोरां में बेरो नीं कुण,तणग्यो दुख री ताणी

आज जणां म्हैं देखूं मुड़’र,

रेत रळ्योड़ा बै दिन।

आँख मांयली बण्या किरकरी,

रड़कै बो’ळा अै दिन।

काळ भाजग्यो जळ सूं डरतौ,इण नै कियां भजावां,

इकलापै री डाकण बैठी, घर-घर मिनखां खाणी

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली पत्रिका ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • संपादक : श्याम महर्षि