गांव में कोई मीन ना मेख,
दुख में गांव ही आडो आवै, ली मैं आंख्यां देख।
गांव में कोई मीन ना मेख॥
दो आखर कांई पढ़ लीन्हा, मैं तो मद में चूर हुयो,
शहरां कै चमक चानणै, मांय जड़ां सूं दूर हुयो।
अनपढ़ अर गंवार के दियो, बिनै बींको ई जायोड़ो,
भूल्यो मैं उपकार गांव को शहरां को भरमायोड़ो।
पर जद खरा-खरी की बाजी गांव ई राखी डेट।
गांव में कोई मीन ना मेख॥
बाजरिया रो मोरण मीठो, काचर बोर मतीर अठै,
केर सांगरी और खींपोळी निरमळब्हेतो नीर अठै।
हेत प्रेम की गंगा ब्हेवै, सागीड़ी गावां मांई,
करा हतायां सागै बैठ, गुवाड़ी में मोड़ा तांई।
इस्यो गांव को रूप सुहाणो, इस्यो ई मौसम नेक।
गांव में कोई मीन ना मेख॥
शहर हाथ जद छोडण लाग्या, याद आई मन्नै गांव की,
मखमल वाळै धोरां की, बड़, पीपल वाळी छांव की।
जद में पाछो आयो तो, ओ ठेठ गोरवैं आ'र मिल्यो,
कही सुणी सारी बिसरा दी, म्हां सूं बांथ पसार मिल्यो।
बड़ो काळजो हुवै गांव को, ओ लाखां में अेक।
गांव में कोई मीन ना मेख॥