हलाबोळ होग्यो मंहगाई दन दन बढ़ती जावै,

छी बाणा कै मोल दूध में छोछो पाणी आवै,

ल्हसण, तेल, मरच्याँ दाळाँ की थांनै कांई बताऊं,

मंहगो हुयो बळीतो बासी खाकर काम चलाऊं,

माई—बाप, छोरा—छोरी, ग्या आया कस्याँ झुलाऊँ।

दस बाई दस का कमरा में सारा नै कियां सुलाऊँ॥

घरवाली का दन पूरा भाई को ब्याव अलग छै,

पाका पाना डोकरा का, सत्तर में माँ को पग छै,

हारी बीमारी दुनियादारी में पूँजी लागी,

जळवा जोत जडूल्या को आया जे भार अलग छै,

एक ढँक्यो तो एक उघाड़ो कुण कुण नै समझाऊँ॥

आमद पांच—खरच दस, बेटी काँच नरखबा लागी,

सोळह पार बसन्त सतरवाँ की पगडण्डी आगी,

मावठ की बौछारां पाड़ौस्यां की डसबा लागी,

सुग्गा देख रूखाळा की तस भूख नींद सब भागी।

प्यासो कूँओं चड़स दायजो भर्‌यो कहाँ सूँ लाऊँ॥

भाई सगा बतळावै आंगा हरिद्वार ले जाजै,

सातों जात गाँव की गंगाजळ गंगौज झिमाजै,

ठाकुर जी की कथा बावळ्या धूम—धाम करवाजै,

धरम—करम कर मिरत लोक सूँ भव सागर तरजाजै,

पण, घर धरती तो गहणै प्हैली याँ नै कस्याँ बताऊँ।

परस बरोबर बेटो रोजगार कै बना तरसग्यो,

भरी जवानी में चन्ता सूँ बाबो जस्याँ दरसग्यो,

खाल पर्‌‌यों की बात सेठ घर बादळ जस्याँ गरजग्यो,

सावण सूखो म्हारो मन भादौ के जस्याँ बरसग्यो,

कांधा झुकग्या पैबन्द पैबन्द कब तक चपकाऊँ॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : किशनलाल वर्मा ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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