दगौ विचारै फेरियौ अंगरेजां लोगां चौगिड़द्दौ,
तासा बंबी झड़ंदा, तेड़ियौ नाग ताय।
भाल घांचौ फेरियौ, खैह री हूंत छायौ भाण,
बाघलौ केहरी ‘चैन’ घेरियौ बलाय॥1॥
माचै खाग झाटां राचै तंवाई छ खंडां माथै,
रत्रां आट पाटां नदी बहाई रोसाग।
पाथ थाटां जंग रूपी कुबांणा नवाई पांणा,
सत्राटां वेढियौ थाटां, सवाई सौभाग॥2॥
सुणै घोर तासां, आसमाण लागियौ सीस,
सत्रां धू ‘चैन’ रो खाग वागियौ समूळ।
कोपै ‘हण’ आसुरां विभाड़वा आगियौ किनां,
सिंधुर पाड़ेवा सूतौ जागियौ सादूळ॥3॥
देखतां एहवो जंग धड़क्कै आगरो दिल्ली,
बंबी जैत मागरा रड़क्कै बारंबर।
झड़क्कै खाग रा बाढ, भड़क्कै कायरां झुंड,
हमल्लां नाग रा माथा रड़क्कै हजार॥4॥