दारू री दोय सदा शूं रीती।

मरय्यां पछै नरकां में पड़णो॥

जीतां जीव फजीती।

जद शीशो पी मेट दी, मद पीवा री गाळ।

वो मदवी शीशोद अब, पीवै शीशा ढाळ॥

मत जावै जद मद पियै, मत पीदां मत जाय।

दोय पगां शूं दोड़ यूं, पूगै पातक मांय॥

ढांढा के’वा री थनै, लागै मोटी गाळ।

ढांढा व्है’वा री जदी,(या) बोतल आगी बाळ॥

पिंड छोड़ नरकां पड़य्यां, सुणिया पापी कैक।

सेंदेही नरकां सड़ै, मदवा मनख अनेक॥

सारा मजबां मांय नै, आसव करय्यौ अलैण।

मद पीवै वीं मनख रै, कठै धरम री कैण॥

धीरप शूं धी जाय नै, वश कर दै विशवाश।

मूंडै चढ़ नै मारसी, (या) बोतल री बववास॥

धक धक करती धधकती, बोतल न्हाखै बाळ।

मूरख रै मन भावती, समझ्यां रै तो शाळ॥

लछमी और कुलछमी, दारू रै दो बैन।

लछमी नै ताड़ै परी, कुलछमी शूं चैन॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय