खाजली खरी च्यार नियंग, पांच माहाव्रत कमल ने संग।

पंच सुमति फूल अणण, निरुपम नीलवरण सुरंग॥

उत्तर गुण लख चैरासी, टबकती टबकी शुभ भासी।

क्रीया कर को सभे पासी, चढ को चढ्यो रंक स्वामी॥

नीला पीळा रंक पालव सोहे, गुप्ति भयना मन मोहे।

शिल सहस्त्र या याच्य हो पासे, भजया परव्रत सारे॥

रंगे रागे बहु माहे रेख, नीलीकाळी नवलड़ी शुभ वेख।

भवभृंग भगननी देख, कानी करुण नीं रेख॥

मुख मंडण फूलड़ी फरति, मनोहर मुनि जन मन हरति।

शुभ ज्ञान रकं बहु चरति, वर सीध तणा सुख करति॥

कपटादिक रहीत सुबेली, सुखकरी करुणा तणी केली।

मोती चोक सुनी पर खेली च्यारदान चोकड़ी भली महेली॥

प्रतिमा द्वादस वर फूली, राजीमती मुख तेज अमूळी।

देखी अमरी चमरी बहु भूली, मेरू गिरि जदे तसु कूळी॥

द्वादस अंग घूघरी भूर, तेह सुणी नाचे देव मयूर।

पंच ज्ञान वरण हीर करता, दीव्य ध्वनि फूमना फरना॥

अे है चुनड़ी उढ़ी मनोहारि, गई राजुल स्वर्ग दूआरि।

वसे अमर पुरि सुखकारी, सुख भोगवे राजुल नारी॥

भावी बंधन छोडै़, पुत्रादिक यामे कोडे।

धन धन यौवन नर कोडे, गजरथ अनुचर ओढे॥

चित चुनड़ी अे जे धरसे, मनवांछित नमे सुख करसे।

संसार सागर ते तरसे, पुन्य रत्न नो भंडार भर से॥

सुरि रत्नकीरति जसकारी, शुभ धरम शशि गुण धारी।

नर नारि चुनड़ी गावे, ब्रह्म जयसागर कहे भावे॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : ब्रह्म जयसागर ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर