तुरी त्यारि कीया कसे जीण तंगं।
बणावै सिरी पाखरां सार वंगं॥
सझे वंस छत्तीस हिन्दू समत्थं।
करेवा महासूर भारत्थ कत्थं॥
ध्रुवा धारणा चित्त ऐसा सधीरं।
वडाळा वहै व्रिद्द वीराधिवीरं॥
पड़ै अग्गि मां उड्डि जेहा पतंगं।
आफाळै अणी उप्परा धारि अंगं॥
जाते काळ नूं चाळ सूं झालि जुट्टै।
तरूवार ज्यां तेज रा ताप तुट्टै॥
मरेवा करै कोड भारत्थि मन्नं।
त्रिणे मेल्हिया प्रज्जळै झाळि तन्नं॥
पड़ंतां दियै अब्भ थंभा प्रचंडं।
खळां मारि खंगे करै खंड-खंडं॥
मरंता न धारै महाजुद्ध माया।
करै काच सीसी जिसी टूक काया॥
सदाई लगै खाग नै त्याग सूरा।
पखै जे प्रिथीनाथ भूपाळ पूरा॥
पर-त्री न भेटै गऊ विप्र पाळै।
चलै गत्ति वेदो खित्री ध्रम्म चालै॥
इन्द्री पंच जीपै महासूर एहा।
जगज्जेठ जोधा हणूमान जेहा॥
न भाखै अली जीह नाकार नाणै।
जुड़ेवा खित्री ध्रम्म आचार जाणै॥
समत्था इसा ऊंडळा आभ साहै।
गजां दंत तोड़ै रिमा थाट गाहै॥
पचारै ग्रहे वाघ रैणा पछाड़ै।
भिड़ंतां गजां भीम जेही भमाड़ै॥
न भागै जिके जुद्ध भागां न मारै।
सरीरां हुवां खंड पिंडाण सारै॥
(वचनिका रतनसिंघ महेसदासौत री सूं)