तूं है जग रौ आसा-दीप
तनै तो जळणों पड़सी रै।
जद जद छासी अंधियारो
चानणौ करणौं पड़सी रे।
अंधेरा में फिरै भूंवता,
पंथी सुख रौ पंथ ढ़ूंढ़ता,
पंथी रौ पथ—प्रदर्शक
तनैं तो बणणौ पड़सी रे।
आंध्यां आवै, तूफां आवै,
काळा—पीळा बादळ छावै,
राख हिय में हिम्मत
तनै ही लड़णौं पड़सी रे।
ज़ग सूतो है सोवण दे,
मीठा सुपनां में खोवण दे,
सारी—सारी रात, दीप।
तनै तो जगणौं पड़ेसी रे।
पूनम हो चावै मावस रे,
जन—जन रैं मानस में,
ज्ञान रौ सूरज ऊगैं