बोली जाणूं रणभेरी री, ना गीत प्रीत रा गाऊं हूं

इण वीर वसुधा री रज्ज नैं, नित सादर सीस निवाऊं हूं

ऊफाण रगां रै रगत मांय, हूं लहू नहीं लज्जाऊंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणाऊंली

देखूं ना सुपना साजन रा, नैणां रा डोरा लाल करूं

बलिदान मांगलै जे धरती, माटी खातर जाय मरूं

मैंदी मोळी री बातड़ल्यां, हूं मन में नहीं बिचारूंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणाऊंली

उण महाराणा री वंसज हूं, जो जूझ्या हळदीघाटी में

माथा बाढ्या हा मुगलां रा, बो समरांगण री माटी में

चेतक चढियोड़ै पाथळ री, शमशीरी राग सुणाऊंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणाऊंली

हाडी रो रगत में है, धरा कहै जिणरी गाथा

जिण काट्यो माथो झटकारै, रातै चटकारै निज हाथां

हूं रंग रचणियै हाथा सूं, दूधारी कलम चलाऊंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणाऊंली

बिन माथां रा धड़ लड़ जावै, अैड़ी अलबेली जामण है

जिण वीर घणेरा जाया है, बा ही मायड़ सागण है

हूं जलमभोम री आण तणै, निज हाथां भाळ चढाऊंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणाऊंली

माथा कटग्या पण झुक्या नहीं, बा बडकां री म्हूं जायी हूं

साचोड़ी महिमा माटी री, अर वीरां री म्हूं गायी हूं

उण सूरजमल अर तेजा री, बलिदानी ख्यात सुणाऊंली

हूं सूर्यवंस री जायोड़ी, खागां रा गीत सुणआऊंली

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : संतोष शेखावत बरड़वा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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