अबळधाट खट झाट दहवाट करत्तौ प्रसण,

भिड़ंतां निसाट चर थाट भागौ।

दुरग दिली जायर दरकार जुध देखिया,

लार संकर वहै प्यार लागौ॥1॥

भीमड़ा तणै तट विकट घट भांजतौ,

भोम भाराथ सिवनाथ भोळा।

जोयवा खड़ा संकर सकत्त जेहड़ा,

दोवड़ा तेवड़ा जूथ दोळा॥2॥

पेखता फिरंता फिरै हूरां परी,

खिलै नारद सकत्त वीर खेला।

अवलिया लिये पैकंबरां अंबरा,

महत है आसुरां सुरां मेळा॥3॥

वीभरै तरै केई मीर वजरै विकर,

तणछ खग फरहरै वीर ताळी।

कहर धर रिणोही वीर हाका करै,

अजे ही भीमड़ा तीर वाळी॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : कुंभकरण सांदू ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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