किसी जिन्दगानी थारी

किसी या जुवानी थारी

मन रो भरम सब खोल

बोल चिड़कली! बोल ए॥

कुणी घोसला में जनमी

कुण खाडा में डेरो?

किण छाजा में उड़े फुदकती

किण घर थारो फेरो?

कुण री थूं जामण जाई?

बोल कुण थारो भाई?

कुणी परणाई सब तोल

बोल चिड़कली! बोल ए।

जोड़ जोड़ ने जोड़्या तरमा

रोज गबूर्‌या हेर्‌या

दाणे दाणे भटकी डोबी

कीड़ा कूट अवेर्‌या

कुण तो कीधी रखवाली

कुण थनै पोसी पाली

कणी चुकायो थारो मोल

बोल चिड़कली! बोल ए।

उड़ती काया अदर रेवणा

तोई दुसमण ल्यारे

बोल बावळी भीड़ पड़्यां पे

कुणी भरोसो थारै?

कियां थूं बंधाणो गेली

पींजरे कणी मेली

पांखड़ा कणीएं दीधा छोड़ ए।

बोल चिड़कली! बोल ए।

आभै ऊपर जीव भमै पण

निजर भौम ने भाले।

ऊपर किण नै निरखे भोली

नीचे कुण नै न्हाळै‌॥

इसी कांई छानी-मानी

देख तो सरी नानीं

कुणी जलमां रा कीधा कोल

बोल चिड़कली! बोल ए।

किस्या राम री भूली सीता

किण मोवण री राधा

अरे अजाणी कणीं घड़ी में

किण रा होग खादा

कुणी डाल पे पीहरियो

कणी छान में सासारियो

पीउ बिलमाणा किण पोळ

बोल चिडकली! बोल ए।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1983 ,
  • सिरजक : विश्वेश्वर शर्मा ,
  • संपादक : नरपतसिंह सोढ़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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