आई आई रै बिरह की बरसात

आकासां घटा घोर उमड़ी

ओळ्यूं आवै छै पिया की दिन रात

बिसरै बैरण एक भी घड़ी॥

बाळी सी ऊमर में म्हारो इस्यो ओड़क्यो भाग

ऊठ गयो परदेसां ढ़ोलो देगो मनैं दुहाग

आई बहार बसन्त महकग्या फळ-फूलां सूं बाग

मीठी मीठी बोलै कोयल घी गेरै छै आग

साजन सपना में करै छै मुलाकात

नैणां सू लागै नीर की झड़ी

ओळ्यूं आवै छै पिया की दिन रात

बिसरै बैरण एक भी घड़ी॥

फळ-फूलां सूं लदी-फदी या महकी मेवा डाळ

काची कैरी कुतरै सुओ दाड्यूं दाख संभाळ

बिना बाड़ को खेत ऊजडै मिरगा चरसी माळ

पटक कुआ कै पीन्दै थारी नौकरी नैं बाळ

सूनी सेजां में साजन को कोनै साथ

सुलगै छै थारा जीव की जड़ी

ओळ्यूं आवै छै पिया की दिन रात

बिसरै बैरण एक भी घड़ी॥

बोलै माझल रात रोज की घात करै छै मोर

पीहू-पीहू प्राण काढले करै पपीहो शोर

काळी-काळी बादळी में बीजळी को जोर

हळकी-हळकी ऊठै म्हारा हिवड़ा में हिलोर

पीळो पडगो रै फिक्कर में म्हारो गात

बिरहा की बैरण नागणी लड़ी

ओळ्यूं आवै छै पिया की दिन रात

बिसरै बैरण एक भी घड़ी॥

जिन्दगाणी की मौजां माणे साथणियां हँस खेल

जोबन रेल जवानी म्हारी खावै धक्कापेल

सूनी सेजां सूखूं सालै काळजा में सेल

थारा झूंठा झांसा कोनै थोथा तिल में तेल

ढ़ोला रोजीनां देखूं रै थारी बाट

झरोखै झाकूं महल में खड़ी

ओळ्यूं आवै छै पिया की दिन रात

बिसरै बैरण एक भी घड़ी॥

स्रोत
  • पोथी : भंवर-पुराण 'बिरहण' ,
  • सिरजक : भंवर जी 'भंवर' ,
  • प्रकाशक : समर प्रकाशन