आयो भरथ अवध अभंग,
मंडे पावड़ी उतमंग।
रइयत कीध अत उछरंग,
इम आवास जाय उमंग॥1॥
जालम तखत कंचण जाण,
पधरा पावड़ी निज पांण।
राजा राम री रसणांण,
आलम अदल वरती आंण॥2॥
थेटू छोड बवां थोक,
मह अध दीध हांसल मोक।
सातूं ईत रो नहँ सोक,
लंगर सुखी सगळा लोक॥3॥
बलकल पहरिया धर बोध,
राखी इंद्रियां कर रोध।
सोवै धरा आसण सोध;
जीमै बखत एकण जोध॥4॥
सुत ग्रह केकई सरसाय,
बन विध रिषी अंग बणाय।
कीधा वारणे धन काय,
मन हर रहै चरणां मांय॥5॥