आवो अंधारो उजियावां,
आवो दिवलां जोत जगावां।
मन में हित री सौरम भरकर, 
सूकै होठां मुळक खिलावां॥

खेतां बादळियो बरसावां
माटी सूरज सूं मिलवा।
हाथां हळदी रंग लगावां,
उच्छब गीतां सूं महकावां॥

आवो दिवलां जोत जगावां,
सूकै होठां मुळक खिलावां॥

मूंडै मिसरी घोळ पिलावां,
सीतळ पून पकड़ कर ल्यावां।
मैंदी बूंदां हाथ रचावां
तिरपत हिरदै नैं कर आवां॥

मन में हित री सौरम भरकर,
सूकै होठां मुळक खिलावां॥

सैं नै मिंदरियै ले जावां,
देवां झुक कर धोक लगावां।
मन रा सुपना खोल बतावां,
सोया भाग-सोभाग जगावां॥

आवो अंधारो उजियावां,
आवो दिवलां जोत जगावां॥
स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : मधुकर गौड़ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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