1)

असुर उरड़ि अवरंग अणगिणत दळ आवियो,
बळू तद थावियो सबळ बैड़ो।
बिरद राठौड़ रणवंक बाधावियो,
तीमहर धावियो शत्रु नैड़ो।

2)

मरदमी धारि तजि मोह घर रो मुद,
छोह रण लड़ण छक रोस छायो।
कोह रा वैण कहि शत्रु वां कारणै,
लोह रा कोट पै चोट लायो॥

3)

देस मारूघरा दुरगादास रो,
भूलज्यो मती अहसान भारी।
नासती समै जद आवियो नास रो,
घिनो सुत आस रो तेग धारी॥

4)

वीर रस मंतरां हूंत विरदावियो,
बिहूं भुज जंतरां सुजस बांध्यो।
अड़या सुणि चारणां बैण आधंतरां,
सुकवियां ततरां हूंत सांध्यो॥

5)

आसरो दुरग मिळतो न जो आसरो
जोधपुर अजारो ऊत जातो।
राठवड़ नाम इतिहास रह जावतो,
खतम व्है जावतो खांप खातो॥

जोधपुरनाथ भो अंत जसवत रो,
हाथियां चढे रण लड़ी हाडो।
आस रो दुरग भी जीव रो आसरो,
गहि गोइन्दास री बात गाढी॥

हरम पतसाह रो दुरग हथियालियो,
भरम दिल्ली तणो दूर भागो।
करमरो पोछड़ी लेख मेरै क्वण,
अजो आराघतां बजो आगो॥






स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : कवियो जोगीदान ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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