बनारी मदील मिजाज करै छै।

सिया निरखत मोद भरै छै॥

सबहि सखी उठि चली महल में,

सबहि झरोका झुकै छै।

छबि देख्यां राम बना की,

बनिता मोद करै छै॥

हर्यो हर्यो रेसम तार जरी को,

सोहन सींख खिचै छै।

सिर सोहै राम बना कै,

सूरज ज्योति छिपै छै॥

सबहि सखी घूंघट में हंसवै,

राम बनू मुऴकै छै।

ऐक सखी छानैसी बोली,

सियाजी कोड करै छै॥

सुर सनकादि आदि ब्रह्मादिक,

शंकर ध्यान धरै छै।

कहत समान कंवर दसरद पर,

फूल आकास झरै छै॥

स्रोत
  • पोथी : लोक में प्रचलित ,
  • सिरजक : समान बाई