मनख रे मन में सोच विचार।
मती कर अतरो अत्याचार॥
करै कणी नै ही डाकण नै, कीनै ही छन्यार।
आंटो और और अपटाळो, देख रियौ करतार॥
एक जीभ रै शाटै दूजो, जाय जमारो हार।
थूं केवै ज्यूं थनै कहै तो, कशीक लागै धार॥
कीदां रा फळ कदी न छूटै, लीजै रोक सम्हार।
आज और पै वीत रही पण, तड़कै थारै त्यार॥
डाकण व्है’ तो शस्त्र सिपाई, क्यूं राखै सरकार।
घर बेठां ही मुलक जीतलै, मूठ मंत्र शूं मार॥
हिया फूट रो मूठ मंत्र पै, झूंठ मूठ इतबार।
भोपां री खोपी में खावै, बोफा वारंबार॥
लोभी कठी रशायण करवा, लाग ठगां री लार।
सामो गरथ गांठ रो खोवै, कूटै पछै कपार॥
पीर शगश रै पानै पड़ पड़, करै धरम धरकार।
चेतायां शूं भी नी चेतै, व्है लड़वानै त्यार॥
पड़ै शूगला पंथ मांय नै, नशा नशावै सार।
पंगा लाग नै रो पागल व्है’ व्है’, घर नै खोय गमार॥
सांख्य योग रो पंथ पादरो, भूल्यो भटका मार।
‘चातुर’ कहै चालवा लागो, उलट लोभ री लार॥