थं ने तो जाणो रे पल्ली पार रे दीवाना

अब ना हिम्मत हार। रे दीवाना अब ना हिम्मत हार।

ऊंढो गहरो देख भायला जे पग पाछो पड़ ज्यागो।

बगत न्हाले बाट भायला तो आगे खड़ ज्यागो।

बगत बगत की बात समझले बिना बगत बेकार।

रे दीवाना होवे ना हिम्मत हार॥

मगर माछला सागर मै खारो जी को पाणी छ।

(पण) संकट देख डरे मति भाया अब आगे की ठाणी छ।

बैठ कराड़े यूं ही मरतो पार होयो तो जै जैकार।

रे दीवाना होवे ना हिम्मत हार॥

जगती की रीत निराळी दे दे दुख हंसावे छ।

हारियो दोष, जीत सब गुण कह कह के गुणावे छ।

भुज बल थारे कमी कांई मारे ना थोड़ी फटकार।

रे भायला होयो कांई हिम्मत हार॥

थं ने तो जाणो पल्ली पार रे दीवाना।

अब ना हिम्मत हार॥

स्रोत
  • पोथी : कळपती मानवता मूळकतो मनख ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर
जुड़्योड़ा विसै