आयां दळ सबळ सामहो आवै,
रंगियो खग खत्रवाट रतो।
ओ नरनाह नमो नहँ आवै,
पतसाहण दरगाह पतो॥1॥
दाटक अनड़ दंड नहँ दीधो,
दोयण घड़ सिर दाव दियो।
मेळ न कियौ जाय बिच महलां,
केळपुरै खग मेळ कियो॥2॥
असपत इन्द्र अवनि आहड़ियां,
धारा झड़ियां सहै धका।
घण पड़ियां सांकड़ियां घड़ियां,
ना धीहड़ियां पढी नका॥3॥
आखी अणी रहै ऊदावत,
साखी आलम कलम सुणो।
राणो अकबर वार राखियो,
पातल हिंदू धरम पणो॥4॥