आऊंजी तौ बात बेई

साथ कोई चीते छा,

करम सूं सगत्यां ही बैठ्या भाऊंजी....

आऊंजी बोल्या कै

सूरज भळसावै छै

भाग ही न्हं फाटै

म्हां अशी जुगत करां तौ/

भाऊंजी नै हुळस'र

क्ही- सुणो आऊंजी!

बुण दया म्हां सूरज के

अनै- कनै सरणाटौ/

प्हैली तौ हेत कौ

पतियारौ बंधावावां

फेर ऊं का म्हैलड़ा ईं

जा'र कतरयाऊं जी....

बायरो जे मूठी में

बांध ल्यां तो सगळा जस

अेक दिन आपणै ही

खातै मंड ज्यावैगा

भाऊंजी की बात सुण'र

आऊंजी नै सीख दी

'थोड़ा भी चूक्या तौ

मूंडा भंड ज्यावैगा

ईं सूं तौ चोखौ छै

थे उठी बांबी मं

हाथ दयौ, म्हूं अठी

मंतर गुंजाऊं जी....

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा