अउक्ड़ार अन्नाहत अक्खर, सिद्धि बुद्धि दें सारद गुणेसर।

मँडळीकाँ मोटाँ कुळि मउडाँ, रसणि सुवाणि कीति राठउड़ाँ॥

ओंकार कभी नहीं नष्ट होने वाला अक्षर है। हे मां शारदा! तू मुझे सद्बुद्धि और हे भगवान गणेश ! तू सिद्धि प्रदान कर ताकि बहुत बड़े मंडलीक तथा वंश-शिरोमणि राठौड़ौं की कीर्ती अपनी जिव्हा से अच्छी तरह वर्णन कर संकू॥

स्रोत
  • पोथी : छंद राउ जइतसी रउ (छंद राउ जइतसी रउ) ,
  • सिरजक : बिठु सुजा ,
  • संपादक : मूलचंद ‘प्राणेश’ ,
  • प्रकाशक : भारतीय विधा-मंदिर-प्रतिष्ठान, बीकानेर
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