सबद उग्र करनाळ सवाई, सुर वरघू तुरही सहनाई।
द्वार सुरेस नरेस दिनाई, वाधै साजै दीह वधाई॥
कुळदेवी गृह पूज सकारण, विंजन नव नेवज विसतारण।
धूप अगर दीपक सुध धारण, अन देवां धन सेवा अपारण॥
ओपै रूप घणौ रायअंगण, चौक मुकत कण केसर चंनण।
तर मंजर फळ माळा तोरण, सोहै द्वार मेळ भ्रत सज्जण॥