वीणा धारद कर विमल, भव तारद सुर भाय।

हंसारूढ़ दारद हरो, शारद करो सहाय॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास ,
  • सिरजक : दयालदास सिंढायच ,
  • संपादक : गिरिजाशंकर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम