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वीणा धारद कर विमल
दयालदास सिंढायच
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वीणा
धारद
कर
विमल,
भव
तारद
सुर
भाय।
हंसारूढ़
दारद
हरो,
शारद
करो
सहाय॥
स्रोत
पोथी
: भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास
,
सिरजक
: दयालदास सिंढायच
,
संपादक
: गिरिजाशंकर शर्मा
,
प्रकाशक
: साहित्य अकादमी
,
संस्करण
: प्रथम