वेद पार पावै नहीं, नाग जाणै भेव।

अपने चित्त उनमान तू,जन रुघा वरणैव॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की वाणी सटिप्पणी (हरीदास की परचई) ,
  • सिरजक : स्वामी रुघनाथदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम