तांतू जळ तांणीजतां, की गजराज पुकार।
राज विनां श्रीरांमजी, है कुण रखणहार॥
माथा ऊपर जळ फिर्यौ, नैनां सूजत नांहि।
बाहर आवौ व्रजपती, ग्राह ग्रहे ले जांहि॥
सादे आवौ सांवळा, भगतां करवा भीर।
कह मोकूं राखै कवण, राज विना रघुवीर॥
हाथी मन हेला दिया, वणीज विखमी आय।
ग्राह तणा मुख मांहि सूं, लीजै प्रभू छुडाय॥