तान सुणै म्रग तन तजै, (इण) सिन्धू राग सुणीह।

कड़तल झेली आय रण, उर विच सेल अणीह॥

कहते हैं कि शिकारी की बीन की तान को सुन कर मुग्ध हुआ मृग उसके समीप पहुँच कर, उसके बाण से आहत हो अपने प्राण दे देता है। उसी प्रकार सिन्धु राग को सुन कर- अर्थात् युद्ध के कोलाहल तथा महाराणा के आह्वान से आकृष्ट हुए- झाला मान ने रणभूमि में पहुँच कर अपने वक्षस्थल पर भालों की अणियों के प्रहार सहे॥

स्रोत
  • पोथी : नारायण-विनोद ,
  • सिरजक : नारायण सिंह जोधा