परकत पूरी पांगळी, व्हैगी वाह विग्यान।
जलमै जांचां जाणियां, सगळा समझै स्यान॥
कुदरत पैली कैंवता, अब आ आगी ओळ।
कांई टाबर कोख में, गयो गबींदै गोळ॥
मांड मसीनां मोकळी, मुरख मरोड़ै मूंछ।
बैमाता बड़का बकै, फेंक दिवी सै पूंछ॥
जांचां जा जंचवायलै, पड़ियो कांई पेट।
जद बेटी रो जाणलै, करदै मटियामेट॥
आवै बेटी आंगणै, इसड़ा कठै संजोग।
सगळै किणविध साळग्यो, औ हीत्याळू रोग॥
छोरी नैं मरवाय दै, ममता मार’र माय।
कांपै कियां न काळजो, कीकर लेवै थाय॥
छानै कुदरत छेड़स्यो, बो छेड़ैलो जोर।
बिजळी पड़सी बादळा, बरसैला घणघोर॥
कीं सांवरियो मारसी, कीं मारैला लोग।
अनुपात जद बिगाड़स्यो, बिगड़ज्यावसी जोग॥
जीणो मुस्कल होवसी, नीं बायां आयांह।
मती लगावो हाथ सूं, लांपो दे लायांह॥
हिंसा करतां सरम नीं, रेय अहिंसक देस।
मत मारो मति मायतां, अरड़ावै अवधेर॥
पीढी रोसी आगली, कीकर होसी ब्यांव।
छोरा-छोरी छोलसी, ल्याव बीनणी ल्याव॥
फेर कठै सूं ल्यावसी, रांडया रैसी पूत।
कोसीजैली कामण्यां, राड़ां लेसी नूत॥
कुदरत बणगी छोडदयो, भाग भरोसै राख।
बेमाता बेटी बणा, दी परसादी चाख॥
ईं खातर अब चेतज्या, सटकै सार संभाळ।
बजा थाळ लै बायली, टाळ परीक्षण टाळ॥