श्री गणपति को ध्यान धर, विश्वेश्वर कर याद।

जिनके सनमुख होत ही, मिटत अनेक विषाद॥

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता
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