आभै चढ़ियो तेजरो, धरती बळती लाय
भड़भूजै री भाड़ ज्यूं, मिनख चणों सिक जाय
काल कुम्हारी रै घरां, छप्परियै री छांव
कळस-कुण्डारा पाकग्या, बिन आवै री ताव
मिनख जमारो के करै, किण बिल मैं बड़ जाय
छाळी पकड्यो ना’र नै, जे छोडै तो खाय
ऊन्याळै मां बीनणी, कुंजो भर ले नीर
नौ डांडी से बीजणों, झीणो ओढ्यो चीर
संग सुहेल्यां झूमको, गढ़ परकोटां जाय
परदेसी परणेतरां, ओलै सी बतळाय
कानी-बाती तेवड़ी, घुळ-घुळ काजळ जाय
मांग हींगळू पळघळ्यो, डील पसेवा मांय
लिख देवरिया पातळा, पाती पिव रै नांव
सांवण किण विध आवसी, थां बिन सूनो गांव
बाबोसा री पोळ मां, चरभर चौपड़ तास
मझ दोपारां डावड़ा, और करो क्यूं आस
झगर बिलोणों मचमचै, घड़लां ऊकळै नीर
राबड़ली रो त्यामणों, लागे जाणै खीर
भींथां ऊतरै लेवड़ा, छान झूंपड़ां छेक
अपठी आंध्यां नीं मिट्या, बिधना थांरा लेख
अबकै पड़सी ठार जद, कुठला भरस्यां लाख
नणद भौजाई लीपस्यां बरतास्यां बैसाख
तपै तावड़ी धकधकै, मोत्यां मैंगी छांय
छोरा वाळै देस मैं, मत दीजे मेरी माय