सेरा उठै सुजीव छाण जल लीजियै।
दांतण कर करै सिनान, जिवाणी जल कीजियै।1
कवि वील्होजी कहते हैं कि सुबह जल्दी उठकर, पानी को छानकर लेना चाहिये, दांतुन करके, जीव-रहित जल से स्नान करना चाहिये।1
गऊ घृत लेवे छाण होम नित ही करो।
पंखैं से अग्न जळाय फूंक देता डरो।3
गाय के घी को छानकर लो और हमेशा होम करो, उस अग्नि को पंखे की हवा से जलाओ, मुख से फूंक न दो।3
सूतक पातक टाळ, छाण जल पीजिजै।
कर आत्म को ध्यान आरती कीजियै।4
सूतक ( बच्चा होने पर 30 दिन तक) पातक (मृत्यु होने पर 3 दिन तक) में भी छानकर पानी पीएं। मन में विष्णु भगवान का ध्यान करके आरती चाहिये।4
मुख बोलीजै सांच, झूठ नहीं भाषियै।
नेम झूठ सूं जाय, जीभ बस राखियै।5
मुख से हमेशा सत्य बोलना चाहिये, झूठ नहीं बोलना चाहिये। झूठ बोलने से नियम छुटता है, इसलिये अपनी जीभ को वश में रखना चाहिये।5
जीव दया नित राख पाप नहीं कीजियै।
जांडी हिरण संहार देख सिर दीजियै।9
जीवों पर दया करो और पाप न करो। खेजड़ी और हिरण की रक्षार्थ अपने प्राण दो।9
सूतक पातक अंत घरहूं लिपवाइयै।
गऊ घृत सुध छाण जु होम कराइयै।12
सूतक-पातक के अंत में घर को लीप-पोत कर साफ़ करें, गाय के घी को छानकर लें और उससे होम करें।12
जल छाणै दोय वार सांझ सवेर ही।
जीवांणी जल जोड़ कुवै जाय गेर ही।13
सुबह और सांय दोनों समय पानी को छानकर लें, उसमें जो जीव है, उन्हें पुन: कुएं में डालें।13
राख दया घट मांहि वृक्ष घावै नहीं।
घर आवै नर कोय भूखौ जावै नहीं।॥14
अपने हृदय में दया रखो और हरे वृक्ष न काटो। अपने घर पर आए हुए अतिथि को भूखा न जाने दो।14