पीळा रंग की ओढ़नी, ओढ़ी धरती माय।
रूप निराळो देख के, सूझे कोनै काय॥
धानी चूनर ओढ़ के मुखड़ौ लियो छिपाय।
चल्यो जोर सूं बायरो, चूनड़ सरकी जाय॥
सरस्यूं फूली खेत में, करसा मन हरखाय।
घरहाळी हरखी फरै, उमग्यौ मन सरसाय॥
धानी रंग सू सज र्यी, मनड़ौ गावै राग।
बीच सुहाणी पगडण्डी, जाणै कढ़ री मांग॥
मरच्यां फूली बाड़ी में, बैंगण उग र्या झूम।
शळगम मटर नखराळी, घणी मचावै धूम॥
हरिया पत्ता बीचां में, मुळकै गोबी फूल।
जाणै टोपो फेर कै, बाळक ग्यो सब भूल॥