साखी आँखी ज्ञान की, समुझि देख मन मांहि।

बिनु साखी संसार का, झगड़ा छूटत नाँहि॥

स्रोत
  • पोथी : गवरी बाई (भारतीय साहित्य रा निरमाता) ,
  • सिरजक : गवरी बाई ,
  • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम