रिण कृसान अरु सत्रु को, सेस बढ़े दुख देत।

याते सेसन छाडिये, यहै नीति को हेत॥

स्रोत
  • पोथी : उम्मेद ग्रंथावली ,
  • सिरजक : उम्मेदराम बारहठ ,
  • संपादक : मंजुला बारैठ ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन, बीकानेर। ,
  • संस्करण : प्रथम