रेत ऊंट की पगथळी, रेत धरा को हार।

रेत आंगणै हरखती, रेत पीव को प्यार॥

स्रोत
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ा