सुप्रसन होय सांमण सारदा, विमळ सर आखर द्‌यै वयण।

कळिजुग रुखमांगद राव कमधज, राजा वाखांणीसि रयण॥

भांति अनांमति देह भवांनी, भणिजै भल गुण सुजस भणूं।

रिण चाचर परणीजै रतनौ, तूंग बखाणूं खेम तणूं॥

पवित्र प्रयाग रतनसि पोहकर, मन निरमळ गंगाजळ जेम।

नर नादैत नरिंद नरेहण, निकळं निघुट निपाप निगेम॥

काबल खंड हुंता कुमारी, घर घर हांडी मीर घड़।

समहर सारीखै सारीखौ, वर कोई लहै आप वड़॥

जोगणपुरी मयण तण जोवण, वर प्रापत गहि पूरत वेस।

परणै जिकौ चढी़ तैं परणण, नव खंड हिंदू तुरक नरसे

रोस कसीय घुमंती रमती, चुंवती मदन महारस चैळ।

हालै घड़ नीसांण हुबाए, रिण पाखर करि नेवर रौळ॥

ध्रूंसम ध्रूंस जांगिये ध्रुवतै, चित अकबर घड़ बेल चढ़ै।

मद उदमाद विरह गहमाती, खांन वरेवा खय खड़ै॥

हयमर गति गयमर गति गहगति, घूंघट घाट रचे घण घेर।

ऊपड़ि रूप खेहाडंबर, अकबर घड़ आवी अजमेर॥

लगन कळह दिली विह लिखीयो, आलम घड़ देखे असमांन।

वींदपणौ अजमरे विसारे, खिसियौ लसियौ हाजीखांन॥

हुय हयकंप कंपे मन हाजन, उद्रक द्रमंक चमंक उर।

मीर घड़ा कूमारी मांढै, अणपरणी लसीयौ असुर॥

जुड़णण जोड़ण नांमा जोड़ौ, नारि नवी निवतैरो नाह।

घावे खांन हजन खाफरघड़, वीरति सिरजीयौ वीमाह॥

आसालूध अजैपुर आवी, जुग सहू जोवति जुआ जुई।

लसियौ हाजन प्रोढ़ौ लाडौ, अकबर फौज सचींत हुई॥

डोहळै मीर घड़ा गजडंबर, वजित्रि नर हैमर कर वेस।

आऊगति हिंदूआं ऊपरि, दससहंसि नवसहंसउ देस॥

दळपति कोइ दूजौ वरदळि, निरदळीया मात लोक नर।

करि ऊछजि विसकन्या कहियौ, राव तणै घरि लहीस वर॥

सझि आउध तिम रूप सनाही, आभूसण आभरणे अंग।

पारंभ मीर घड़ा गुड़ि-पाखर, जोधां सूं रचियौ रिण जंग॥

सगति वडा वड अेक सारीखा, बाबर-हर सलखा-हर वेह।

अकन कुंवारि नारि अजमेरी, चाली तैं सांहमि चढ़ जेह॥

गाज आवाज सांभळै गढ़पति, आकंपिया धरपुड़ अनड़ांह।

जोध तणै घरि वींद जोवती, घूमी सांभी मीर घड़ाह॥

वड सिरहूं नांखे वड वडती, विसरसि पूरति विपरति वेस।

लाडी आवै गगन लोडती, दौड़ाया भड़ चैदस देस॥

निमंत्रीहार अयार निसासहि, दि्रहंगसि ढोलां रवद दुबाड़।

विसकन्या देखे वजवाया, मुणियउ मांड अनड़ मवेाड़॥

विकट अणी नख कूंत वधारे, भुज भळका भाला भालोड़।

खापर फौज पाधरा खड़िया, जैतारण ऊपरि जंग जोड़॥

अरि-घड़ दूण सवालख आवध, सोळे दूण सझे सिंणगारि।

कूंत कबांण छुरी क्राछोली, मलफि गुरज गहि फणिज कुमारि॥

सिंहण डसण तण नयण वयण सिंघ, धनुस मदन सरपंच सधूप।

रूप किया तो ऊपर रतना, रिम घड़ नव तेरह तिम रूप॥

अंत दिन लगन महूरति ऊपरि, धवळ मंगळ दळ हूंकळ धौड़।

मीरां घड़ परणण कौमारी, मारु रयण बांधियौ मौड़॥

अपछर देख मळै आखाड़ौ, विघन तणौ रचियौ वीमाह।

रिणवट उरां बांधीयौ रतने, परा फौज आवी पतिसाह॥

मन खट राग वधा लग मौजां, कटि मेखळ कसियौ कुरबांण।

आवै मीर घड़ा उपडंखी, नीधसतै नेवर नीसांण॥

पाखर घोर बाजती पायल, कांकण हाथळ चूड़कस।

खाफर घड़ आवी खीमावत, रयण रमाड़ण रूक रास॥

डाक हाक हूंकळ आडंबर, डह डायणी उडियांण डोह।

वर कज चलि आवी विसकन्या, लखण बतीस छतीसे लोह॥

चीर जरद पाखर चंडाउण, कांचू जिरह जड़ाव करि।

प्रिय कजि परिमळ रजो पींजरै, हाले ढूकी जोधहरि॥

नयण कटाछ बांण नीछटती, कसि चिहुं दिस फेरती कटाह।

ऊठ रयण वर परणण आवी, घूमर कीयां मीर घड़ाह॥

मंड वच जेणि सेहुरा कांमण, कर गैवर मालै किरमाळ।

ढूकी ढाल वेणि ढळकंती, तोरण जैतारण रिणताल॥

दूठि घड़ा हंसती गजदंती, आरति अति गति अंग अनंग।

पाट अघोर रैण परणेवा, चंवरि चूंपि चढ़े चवरंग॥

रावत वींद नरिंद रतनसी, वीरति दीयंतो वींद वग।

मौड़ मुगट सिर टोप मांडियौ, लागू ऊठियौ अभिलग॥

जग भळ भांण हुवै वडजांनी, मुणि सत जास संसार मनै।

काळौ कोट दुबाहौ कमधज, किसनौ अणवर रयण कन्है॥

पुंगरण जांन सेन है साखती, अणवर गोयंद किसन अगाह।

रवद्द तणी घड़ सांम्हौ रतनौ, मिळियौ मौड़ बंधै रिण मांह॥

तप उल्हास तरसि मुणि सातन, चढ़ि वर सोह चढ़ै ध्रू चीत।

वीरत रयण तणै तिण वेळा, ऊगा मुहि बारह आदीत॥

उडियण थाळ आवधे आखे, अत प्रब हुळ, हाथळां अनींद।

भळके खगे ऊनगे भाले, वधाविजै रतनासी वींद॥

दसण सयण रयण छळ दमंगळ, राछ गळो वळ भींच रहै।

धड़ आरती ऊतरै धारां, वरमाळां किरमाळ वहै॥

डतबंग वर बेहड़ा ऊतारै, दाखव रतनौ हाथ दवै।

फारक आंहमौ सांहमौ फेरै, हुव हैकंप वीमाह हुवै॥

मिळी रज धूळ इळा नह मंडै, मिळि घण घाय मुहि मंडाणौ।

चित्रांगण विपरीत में चैरी, तुरी चढि़ परणै खेम तणौ॥

रुघ जुग वेद नृसींग हैं सारव, काट कड़ी बाजै केवांण।

लोडति घड़ा रतनासी लाडौ, जुधि हथळेवै जुड़ै जुवांण॥

पुड़ि गयणांग ग्रीध पंखारव, गोम गहै गज घाट गुड़ै।

पंडर घड़ रतनौ परणीजै, जांगी नेवर सद्द जुड़ै॥

काबिल कोट तणी विसकांमणि, धाए घूम सिंगारि घुरै।

फिर फिर अफरि रतनसी फुरळै, फौज अपूठै फेरि फिरै॥

फेरी अफरि फिरणी सि फेरी, वींद रतनसी बांध वड़।

धकधूणी फुरळी धौ फुरळी, घेर मिळी सुरतांण घड़॥

लोह विमूह रतनसी लाडै, खत्रि मारग रिण जंग खरै।

काबल फेरै घड़ा काबली, हठिमल परणी सूर हरै॥

धमचक धोम होम धारा रव, पुरि सिंदुर रुहिर परनाळ।

विपरति गति रतनै म्रतवासै, विहंड घड़ा परणी विकराळ॥

भाख सत्रां खटतीस भाखीजै, धरपुड़ घाय निहाई ध्रुवै।

झीरोहर कर झाट जूंबरिक, हुल हाथळ जिहिं भगति हुवै॥

वाहै हाथ हुवै हथवाहा, आंक अणी सिर फूटै अंगि।

वींदणि वींद बिन्हे समवादे, जू रमिया सारे रिण जंगी॥

जुध पारखि रमतै जोधा रवि, काळा घाट वणावण केव।

खापर घड़ रतनौ खेड़ेचै, बिजड़े बाथां मिळिया बेव॥

तूटै हार अयार तुरंगम, पहुटति मांग अनंग पड़ी।

कमधज रतनै स्यूं विसकांमणि, चाचरि चवरंग पलंगि चढ़ी॥

बोलै अबळ सबळ दळ भूप बळ, जीय जीय मुख वांणि बखांणि।

रंगि जंगि सेज रतन स्यूं रमतां, सांच घड़ा मनियौ सुरतांणि॥

रिणवट पात्र खत्रीवट रतनै, घाए मनावे मीर घड़ा।

लोहां खियै तोड़िया लाडै, कांचू जोसण कसण कड़ाह॥

धार सनाह प्रसिद्ध ध्रूसटिया, नांमी सिंदूरी मुख नारि।

भिड़ मदन गह विरह भांजियौ, रतनै वांकूड़ै भरतारि॥

रूक गज हय घड़ झपटी रतनै, चाचर सुं चित जूंझे चंगि।

खापरि असुरि अहर खंडरिया, रूधिर सिंचोळ तंबोळ रंगि॥

रमि रस अकस सत्ति गति रतनै, जंग खग अंग जुआ जुओ।

खंड विहंड हुओ खेड़ेचै, हुवई घड़ा लयलीन हुवौ॥

क्रोध मुखी सारां मति कांमति, विसधाये निज लीध वर।

ढुळियै रयण ढोलियै ढोवै, लोह तणा बाजै लहर॥

भोग विकल त्रिया मन भेळे, घटि घटि आउध विघन घड़ी।

रंग पलंग पौढियौ रतनौ, चवरंग खग्ग खुमार चढ़ी॥

प्रीतम मीर तणी घड़ पीणुक, वेधक विघन तणौ वीमाह।

रहियौ विचे खड़गहथ रतनौ, म्रत्य मिंदर रिण चवं री मांह॥

रहचि रूक परणियौ रतनौ, धड़ भड़ ऊरि तूट धूऔ।

हाट करग भोगावि हजूरे, हाथ मेळावे सुजस हुऔ॥

जाती गई धरी विण जोसण, विण चरणां पाखर विण चीर।

मीर बची तोड़ाविय मुहियउ, मणि मणि हड मांणिक्रू डंड मीर॥

हाकां वीर कळह पुन हड़हड़, रिण चामंड घण घेर रची।

पळचर नहराळां पंखाळां, माचि झड़ापड़ि झाट मची॥

भैरव भूत भचाक्रक भेळा, ग्रीधां लाधे राते ग्रास।

खड़खड़ीया कतियायन खाफर, उडियण गहकिया आकास॥

मड़हट मांस लोहि महमहियौ, ग्रोधूळा मिळ गमेगमा।

करकां ऊपरि हूबिया कोलू, साकण सावज हेक समा॥

चाचर मांगणहार नसाचर, चतुर प्रेत ध्रवे निरबांण।

सकति समळि सिद्धि ग्रीधणि, रतनै मोकळिया आरांण॥

खड़खट थट लाखावट खळखट, गजगति पर कीधौ गजगाह।

रातल सावज ध्रविया रतनै, पूजवियौ पळ प्रघळ प्रवाह॥

राज करै सुरथांनक रतनौ, जांमल आप कनै जगदीस।

हलिया पलचर कहतां हुबतां, ऊगसतै देतां आसीस॥

रमि झकोळ विचाळै रतनौ, आतमभव सतियां अंगूठ।

झूलर झळहळतै मंझारे, कूंतहथौ पौहतौ वैकूंठ॥

चतुर मयण मालती घ्रताचणि, रंभ त्रिलोचन अंब रथ।

परणी अछै रतनसि पौहतै, प्रसिद्ध त्रिजग राखी परसिद्ध॥

बळभद्र द्रू पहिलाद बभीसण, रतनौ रुखमांगद अमरसे।

मांझी हतौ भीच कुळ मंडण, सहकारी जुहिठळ सारीस॥

परहर नाग तणौ पुर नरपुर, जमपुर पर सु गयण जुवांण।

अवचळ गिरतरु सुरतरु ऊपरि, विच वसियौ वैकुंठ विमांण॥

इन्द्रपुर ब्रह्मपुर नागपुर सिवपुर, परमपुर तांई ऊपरि पार।

राजा सरग सातमै रतनौ, मिळियौ जोत सरूप मझार॥

रयणि भुजांबळ आफळ रतनौ, सारां चढ़ि नीवड़ असमांण।

जांमण मरण तणौ लगि चिहुं जुग, भागौ फेरौ कविलै भांण॥

खाफर घड़ सु साहे खांडौ, रावां चाड कनवजे राव।

रिणि चढि अचळ मरे द्रू रतनौ, जुग जासी पिण नांम जाय॥

इति रतनसी खींवा ऊदावत री वेलि संपूरण॥

स्रोत
  • पोथी : ऐतिहासिक वेलि-संग्रह ,
  • सिरजक : दूदो विसराल ,
  • संपादक : डॉ. नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर