शीश मुकुट सम सोवणो पेच भलो पिचरंग।
मान बढ़ावे मोकळो रंग ज साफा रंग॥

आडो फिर फिर अड़थड़ै मस्तक चढै मतंग। 
सामधरम सब सूं सिरै घोड़ा ने घण रंग॥

झाटक जबरी झेलता जितण झुझारां जंग।
दीठ रुखाळा देह रा रंग बखतरां रंग॥

अरियां सूं अड़ती बखत दाटक करें दबंग।
त्राटक तीखी तेग तूं रंग रणथली रंग॥

बाढाळी बढ़ बैवती आडाळी अड़ अंग।
लाडाळी लख लख लड़ी रूड़ी ढालां रंग॥

भळकै भाला भळहळै पळकै जांण पमंग।
छळकै शोणित छळहळै नेजा ने नवरंग॥

रावण हनियो  रामजी अमरत कळश अभंग।
चँहुआँण नहीं चूकियो रंग शरासन रंग॥

कारतूस है कारगर भाकर फोड़ भड़ंग।
भचकै करदे भूटको रंग भुशुण्डी रंग॥

कर सूं छूटी काळजे ढाबण रो नही ढंग।
व्हारू रे हत्थ वल्लभी जमदण ने जसरंग॥

दसूं दिशा में दिव्यतम निकळे नाद निहंग।
निवण करूंह सुघोष ने रूड़ा देय'र रंग॥

कम्पै कायर काळजा दुश्मण व्हैजा दंग।
रण में गूंजे घोर रव रंग नक्कारा रंग॥

अरक अणूंतो आकरो आठ पहर आड़ंग।
जोर अमूझै जीवड़ौ रे उन्हाळा रंग॥

बाहविया बोले बहुल मीठा मोर मलंग।
इन्दर.राजा उनमियो बरसाळा बहुरंग॥

जीमण ताता जीमणा ओढण गाबो अंग।
सन्धीणा हद सांवठा रंग सियाळा रंग॥

मदछकियो मारू मुदै साईनां रै संग।
मदरातां हद मोवणी पड़वा ने पण रंग॥

ढाळूं हिँगळू ढोलिया पौढे भँवर पलंग।
झीणो बाव झुलावती रहे बींजणी रंग॥

राचण राजल रसवती सोजतणी शुभ रंग। 
सौभागण शोभा घणी मैंदी ने मह रंग॥

चौपड़ियो मिल चूड़लो सखियां रंग सुरंग। 
मंगळकारी मंजीठ ने रमणी दिन्हा रंग॥

केश औसरै कामणी कञ्चन मुक्ता कंग।
शिव चूड़ा में चन्द्र सम रे औसरणी रंग॥

सुख उपजत मुख जोयकर तन मे उठै तरंग। 
काँच साँच री जाँच कर रंग आरसी रंग॥

बेलिड़ा मिल बैठिया उर में उठी उमंग।
खाणा-पीणा खरचणा रंग हथाई रंग॥

ठकराई हद ठाठ री कुड़ कुड़ करत कड़ंग। 
पञ्च तत्त्व परतख परस रंग रे होका रंग॥
स्रोत
  • सिरजक : रतन सिंह चांपावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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