रामत चौपड़ राज री, है धिक बार हजार।

धण सूँपी लूँठाँ धकै, धरमराज धिक्कार॥

भावार्थ:- द्रौपदी सबसे पहले युधिष्ठिर को सम्बोधित करके कहती है कि आपके इस चौपड़ के खेल को हजार बार धिक्कार है। जबरदस्त (शत्रुओं) के समक्ष आपने अपनी विवाहित पत्नी तक को सुपुर्द कर दिया! हे धर्मराज! आपको धिक्कार है।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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