भासा में जुगबोध छै, बोली में रसधार।
वा छै ऊंची डूंगरी, या बहती जळधार॥
भासा तो भळका करै, बोली छै मनवार।
वा माथा को मौड़ छै, या हिवड़ा को हार॥
सोनल भागां भुनर में, कोर काळजै भान।
सौरम सरणी बाग में, प्रीत पुराई पान॥
ऊंघणनींदी आंख सूं, बोल्या सूं तरुपात।
तड़ तड़कै तड़की प्रभा, जोत झलाई रात॥
भोळी भागां फाटरी, लाई मणां सनेह।
मुळकी मुळकी पूरबा, कंचन बरणी देह॥
पान पान में प्राण छै, भाव भरी या दूब।
सौरम सरणी बाग में, पस्बां खस्बू खूब॥
भागोट्या को भाग यो, फाटी फाटी भाग।
लाली लाली पूरबा, प्राण पंखेरू जाग॥
कंचन किरणां काम की, कोर काळजै भान।
प्रीत पुराई पान पै, धरणी अंबर मान॥
नूराणी भरदै धरा, जागै हिवड़ै आस।
साचो सद्गुरू जाणजै, भीतर भरै उजास॥
गुरु छै सूरज चांद-सो, ग्यान उजाळो देय।
किरणां बांटै भोर सी, घोरतमस हर लेय॥
दियो जळावै ग्यान को, गुरु ईं करूं प्रणाम।
सैंचंदण माचै हियै, गुरु मुगती को नाम॥
छांव छटा छवि सांवळी, भावित भोर विभोर।
हरख हाव हर हाल में, मुदित मान मन मोर॥
सुवरण सरखी भूमका, सबदां सरखी गार।
रचना आंगण लीपलै, भावां सुरसत सार॥
भांत-भांत का रूप छै, भांत-भांत का नाम।
च्यार धाम की जातरा, भांत-भांत चतराम॥