राजड़ कहै प्रताप रौ, भड़ क्यौं सहै अमग्ग।

मूछ उभारै हत्थ सूं, जो कर धारै खग्ग॥

छत्रपती छांनौ विखै, अनपत्ती हित जोड़।

दिये धरत्तो आए री, ते खत्री कुळ खोड़॥

बोलै बंधव रूपसी बोलै मोकमदास।

तज अवसांण विलास पद, को मांनै ध्रम जास॥

बेटौ गोकळदास रौ, यां बोल्यौ हटमल्ल।

जो अवसांणै नां मरै, सो जमरांण निकल्ल॥

केहरियौ अचळेस रौ, देस म्रजाद कमंध।

प्रीत नरंदां देह पण, रीत समंदां बंध॥

यां खग तोले बोलियौ, अचळ तणौ कुळ थंभ।

जूटै खेटां मोख पद, माळ पळेटां रंभ॥

केहर अचळ कमंध तण, उर पण लीधौ एम।

वरण त्रिविद्धी साह घड़, मरण तणौ द्रढ नेम॥

चुतर कहै रामंग रौ, ग्रहूँ भुजा बळ आभ।

मरण पायौ धार मुँह, तिको गमायौ लाम॥

स्रोत
  • पोथी : राज रूपक ,
  • सिरजक : वीरभाण रतनू ,
  • संपादक : रामकर्ण असोपा ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ,
  • संस्करण : प्रथम