रह्यो हित गण रैंत रौ, लाग लपट सह तोड़।

नान्हां मिनखां हित लड्यौ, मुलक तणौ सिरमोड़॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास ,
  • सिरजक : दयालदास सिंढायच ,
  • संपादक : गिरिजाशंकर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम