प्रेम विरह को बढ़त हैं, मो हिय में विस्तार।

यह छांनी वेद करत, मोकों असह्य मार॥

स्रोत
  • पोथी : मध्यकालीन कवयित्रियों की काव्य साधना ,
  • सिरजक : बृजदासी रानी बांकावती ,
  • संपादक : उषा कंवर राठौड़ ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध-केन्द्र, दुर्ग, जोधपुर।